हैप्पी समर ऑफ़ '२२

इस बार गर्मी बहुत जल्दी आ गई! होली पर जाती ठण्ड की विदाई भी महसूस नहीं हुई! पानी से भी डर नहीं लगा! अच्छा ही हुआ घरवालों ने छत पर और मुझ पर दो बाल्टी पानी डाल दिया! अभी तो गरम कपड़े, मम्मी के बनाए स्वैटर, बिटिया की ऊनी जुराबें - सब बाहर वाली अलमारी में ही रखे हैं! अभी तो उन्हें धो कर, धूप में सुखा कर, फिनाइल के साथ गठरी में बांधने का मौका भी नहीं मिला! जयपुर की गर्मी तो बेहाल करने वाली सी है! वैसे यह हम हर साल बोलते हैं, पर इस बार आंकड़े भी बोल रहे हैं!

शायद गर्मी ही वजह होगी कि लोग भी गर्म और लाल होते नज़र आ रहे हैं! बिग बॉस का कीड़ा सा फैलता नज़र आ रहा है! सबको लगता है कि उन्हें दबाया जा रहा है! नीची नहीं, ऊँची जाती वाले भी यही कह रहे हैं! स्टूडेंट्स ही नहीं, टीचर भी यही कह रहे हैं! नौकर ही नहीं, मालिक भी यही बोल रहे हैं! औरतें ही नहीं, मर्द भी यही महसूस कर रहे हैं! जब व्हाट्सैप्प के एडमिन कहते हैं कि यह सब बातें मत करो - यह गंभीर है, ऐसे खुले में वाद विवाद नहीं करना चाहिए, तो सभी पक्षों को लगता है कि उन्हें ही दबाया जा रहा है! किसका दुःख सबसे बड़ा है? इसका भी मुक़ाबला है! हर किसी को लगता है कि वो विक्टिम है और बाकी कल्प्रिट; वो सही है, बाकी ग़लत! आजकल कोई दबना नहीं चाहता! आजकल एम्पावरमेंट की वाइब अच्छी लगती है!

लेकिन मज़े की बात यह है कि सब लिखित में हो रहा है - ट्विटर और व्हाट्सैप्प पर! एम्पावरमेंट तो है पर दबी-दबी सी! बोलने की आज़ादी है और हिम्मत भी ज़्यादा नहीं लगती! सामने कोई नहीं खड़ा! बस फ़ोन नंबर और फ़िल्टर वाली डीपियाँ! रिश्ते भी गहरे नहीं हैं, अजनबी से हैं! लेकिन गुस्सा बहुत और गंभीर मुद्दे हैं! अपना अपना दुःख और दुःख सबका गहरा लगता है!

कुछ दिन पहले कश्मीर फ़ाइल्स पर आदिल हुसैन का ट्वीट पढ़ा "....आर्ट शुड नॉट बी रिऐक्टिव..!" उनकी बात ठीक है! वह कह रहे हैं कि आर्ट का इस्तेमाल लोगों को भड़काने के लिए नहीं किया जाना चाहिए! यह उनका दृष्टिकोण है! पर लोगों ने बैंड बजा दी, काफ़ी धो डाला कमैंट्स से! उनको बुरा तो लगता होगा! शायद गुस्सा भी आता होगा! लोगों ने कहा कि जो है, वही दिखाना चाहिए!आर्ट का मतलब यह तो नहीं कि सच जैसा है, वैसा ना दिखाएँ? गुलज़ार साहब भी बोलते हैं कि आर्टिस्ट का काम है हर चीज़ को सुन्दर बनाना! अगर वो एक आम से फूल पर पूरी कविता लिख सकता है, तो क्या उसी तरह उसे एक दुःखद घटना को बेहद दर्दनाक बनाना चाहिए? भला जैसे को तैसा कैसे दिखाएँ? किसी का तो नज़रिया होगा!

लोगों को आदिल दा पर गुस्सा आया! फिर देखा उन्होंने ट्विटर पर माफ़ी सी मांग ली! यह भी ठीक है! पर लोग बोले की आज़ाद देश में बोलने की आज़ादी है! माफ़ी क्यों मांगते हो? कमज़ोर हो क्या? वो उनके फैन थे, वो प्यार में बोले, अपनी जगह वो भी ठीक हैं! समझ नहीं आता कौन ठीक है और कौन ग़लत! सब धुंधला सा है! सबका अपना-अपना नजरिया, और अपना-अपना सच है! अपना-अपना कारण है गुस्से का! और फिर सूरज की रोशनी से आँखें बंद हो जाती हैं, चेहरा लाल, शरीर में पसीना और अंदर भर जाता है और भी गुस्सा!

क्यों इस साल गर्मी इतनी जल्दी आ गई? किसी के पास जवाब हो तो ज़रूर बताना! ट्विटर या व्हाट्सैप्प पर मत बताना! फिर शायद कोई गुस्सा हो जायेगा कि यह भी तुम्हारा ही किया हुआ है, साला तुम ही हो गन्दी गर्मी और ग्लोबल वार्मिंग का कारण! हो सके तो रास्ते में मिल जाना, मुस्कुरा कर देख लेना और बोलना - हैप्पी समर ऑफ़ '२२!

मेरी स्टूडेंट मीनल ने इसे 'प्रूफ रीड' किया!बहुत धन्यवाद! आखिर स्टूडेंट भी टीचर होता है!

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Ritika

Assistant Professor, Malaviya National Institute of Technology Jaipur. PhD, Indian Institute of Technology Roorkee.